बहुत समय पहले की बात है, गंगा नदी के किनारे एक पीपल का पेड़ था। पहाड़ों से उतरती गंगा अपने पूरे वेग से बह रही थी। अचानक पेड़ से दो पत्ते नदी में आकर गिर गए। एक पत्ता तिरछा गिरा और एक पत्ता सीधा गिरा।
जो पत्ता तिरछा गिरा था वो जिद पर अड गया की और कहने लगा की आज चाहे जो हो जाए में इस नदी को रोक कर ही रहूंगा। चाहे मेरे प्राण ही क्यों न चले जाए, में इसे आगे नहीं बढ़ने दूंगा।
वह पत्ता जोर जोर से चिल्लाने लगा की रुक जा गंगा में तुझे आगे नहीं जाने दूंगा। पर नदी तो बहती ही जा रही थी, नदी को तो पता ही नही था की कोई पत्ता उसे रोकने का प्रयास कर रहा है। इधर पत्ते की जान पर बन आई थी।
वह लगातार संघर्ष कर रहा था। वो पत्ता नही जानता था की बिना लड़े भी वही जाना था, जहा थककर और हार कर पहुंचेगा। परंतु अब और तब के बीच का समय उसके लिए दुख और संताप का समय बन चुका था।
वही दूसरा पत्ता जो सीधा गिरा था, वो नदी के प्रवाह के साथ बड़े मजे से बहता जा रहा था। और कह रहा था की चल गंगा आज में तुझे तेरी मंजिल तक पहुचाऊंगा। चाहे जो हो जाए में तेरे मार्ग में कोई भी अवरोध नही आने दूंगा।
नदी को इस पत्ते के बारे में भी कुछ पता नहीं था, वह तो अपने धुन में सागर की ओर बहती जा रही थी। लेकिन यह पत्ता खुश और आनंदित था। क्योंकि उसे तो लग रहा था की में ही नदी को अपने साथ बहाए ले जा रहा हूं।
तिरछे पत्ते की तरह सीधे पत्ते को भी यह नही पता था की चाहे वो नदी का साथ दे या नहीं दे, नदी तो वही पहुंचेंगी, जहा उसे जाना है। पर अब और तब के बीच का समय उसके लिए आनंद का समय बन चुका था।
जो पत्ता नदी से लढ रहा था, उसके जीत का कोई उपाय नहीं था, और जो पत्ता नदी के साथ बहता जा रहा था, उसकी हार का कोई उपाय नहीं था।
दोस्तो यह कहानी हमे यह सिखाती हैं की जिस दिन हम लड़ना छोड़ देते है, उस दिन से हम जीना शुरू कर देते है। अब लड़ना छोड़ देने का अर्थ यह नहीं है की आप सपने ना देखे या उसके लिए मेहनत करना बंद करदे।
बल्कि लड़ना छोड़ देने का अर्थ यह है की आप उन चीजों की बदलने की कोशिश न करे, जो आपके हाथ में नही है। यही खुश रहने का मूल मंत्र है। दूसरो को बदलने में अपना जीवन को बर्बाद न करे, बल्कि खुद को बदलें।
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