अर्चना एक सम्पन्न, सुशिक्षित मध्यवर्गीय परिवार की लड़की थी। बड़ी ही शोख, तेज-तर्रार और निडर किस्म की लड़की जो अपने को लड़कों से किसी माने में कम नहीं समझती थी। स्कूल के दिनों में ही उसने समीज सलवार को तौबा कर दिया था। कॉलेज में तो वह जीन्स से नीचे कुछ पहनती ही नहीं थी। मॉडर्न बनने की धुन में क्लॉस के लड़कों से बेझिझक मिलती जुलती थी। इस दौरान उसके बहुत से बॉय फ्रेन्ड बन गये सभी उसके साथ रेस्तरां में कॉफी पीने को तरसते थे। अर्चना भी किसी को निराश नहीं करती थी लेकिन वह भूल गई कि ये मनचले लड़के सिर्फ उसके जिस्म के दीवाने थे। इन्हीं लड़कों में एक लड़का था करुणेश वह देखने-सुनने में स्मार्ट तो था ही पढ़ने- लिखने में भी अव्वल था । उससे मिलकर अर्चना अपना सुध-बुध खो बैठी । उसे ऐसा लगा जैसे उसकी सूरत उसके दिल में उतर गई हो, जैसे उसके पोर-पोर में एक रूहानी प्यास जग गई हो ।
अर्चना उसके प्यार में इस कदर दीवानी हो गई कि वह उसे हर हाल में पाना चाहती थी। लेकिन वह यह भी जानती थी कि उसके माँ-बाप इसके लिये कभी राजी नहीं होंगे क्योंकि उनकी जाति अलग थी। आखिर दोनों ने घर से भागकर शादी करने की योजना बनाई और एक दिन कुल परिवार की सारी बंदिशें और मर्यादाओं को लाँघकर अर्चना करुणेश के साथ भाग निकली।
लेकिन घर के दरवाजे से बाहर पैर निकालते ही उसे ऐसा लगा जैसे ये दरवाजे उसके लिये हमेशा के लिये बंद हो चुके हों। वह रात के अंधेरे में आगे बढ़ रही थी, लेकिन उसके पैर उसे पीछे खींच रहे थे। जैसे कोई कह रहा हो 'लौट आओ अब भी वक्त है। जिस समाज में तुम रहती हो उस समाज में जब कोई लड़का किसी लड़की के साथ
भागता है तो उसका कुछ नहीं बिगड़ता है, लेकिन लड़की अपना सब कुछ खो देती है माँ-बाप, भाई-बहन, कुल परिवार सब कुछ एक कालिख पोत देती है अपने और अपने भाई-बाप के चेहरे पर इसी उधेड़-बुन में वह आगे बढ़ती जा रही थी एक अज्ञात खौफ और तनाव से ग्रस्त। तभी मोड़ पर खड़ा करुणेश दिखाई दिया। उसने आगे बढ़कर उसका हाथ थाम लिया। अर्चना को ऐसा लगा जैसे उसे एक नया बल जया सहारा मिल गया और एक बार फिर रूमानी सपने उसके सीने में कुलांचे भरने लगे ।
लेकिन जब वह स्टेशन पहुँची तो फिर वही खौफ उस पर सवार हो गया । उसे ऐसा लगा जैसे सबकी निगाहें उसे घूर रही हों । जल्दी- जल्दी टिकट कटाकर दोनों दिल्ली जानेवाली गाड़ी में बैठ गये। दोनों एक ही बर्थ पर बैठे थे लेकिन एक दूसरे से बेखबर जिससे मिलने के लिये वह बेचैन रहती थी आज वह उसके पास बैठा था, लेकिन आज वह ऐसे बैठी थी जैसे कोई अजनबी के पास बैठी हो। न भूख, न प्यास, न नींद। कल शाम को गाड़ी दिल्ली पहुँची, लेकिन इस बीच काफी जिद करने पर भी उसने एक कप चाय के सिवा कुछ नहीं लिया। करुणेश की हालत भी कोई खास अच्छी नहीं थी । वह भी मायूस बैठा था । दिल्ली स्टेशन पर उतरने के बाद वे सीधे एक होटल में पहुँचे। अर्चना ने कहा-'मेरे सिर में जोरों का दर्द है। कल से नींद नहीं आई। तुम नीचे से एक सेरीडॉन और एक स्लीपिंग पिल ला दो, मैं सोना
चाहती हूँ ।' 'सो तो ठीक है । लेकिन पहले फ्रेस होकर कुछ नास्ता तो कर लो।' करुणेश ने आग्रह किया ।
तभी बयरा नास्ता लेकर आया। काफी जिद करने पर उसने थोड़ा ऑमलेट और टोस्ट लेकर चाय पी फिर दवा खाकर बिस्तर पर जा गिरी ।
करुणेश भी नास्ता कर पास ही बिस्तर पर लेट गया । लेकिन उसे भी नींद नहीं आ रही थी। भावावेश में लिये गये कदम पर वह भी पछता रहा था । भविष्य की चिंता से वह भी परेशान लग रहा था ।
तभी उसकी निगाह पास में सोई अर्चना पर पड़ी। वह नींद में बेसुध पड़ी थी । सांचे में ढले उसके अधखुले जिस्म को वह एकटक निहारता रह गया । उसकी उठती गिरती सांसों से उसका पूरा शरीर आंदोलित हो रहा था । उसे ऐसा लगा जैसे कोई उफनती हुई नदी उसके पास से गुजर रही हो। वह अपने को रोक नहीं सका और.......
जब सुबह में अर्चना की नींद खुली तो अपने कपड़ों को अस्त- व्यस्त देखकर चौंक पड़ी। लेकिन पास में पड़े करुणेश को देखकर उसे सबकुछ समझते देर नहीं लगी। वह रुआंसा होकर बोली- 'यह तूने क्या किया ? मेरी तबीयत खराब थी। तूने थोड़ा तो सब्र किया होता। मैं बहुत दिनों से सोच रही थी.... कितना अच्छा लगेगा जब सब कुछ पहली बार होगा । मैं उस घड़ी के एक-एक पल को जीना चाहती थी जिसके लिये औरत अपना सबकुछ न्योछावर कर देती है लेकिन तूने तो........' फिर थोड़ा गुस्से में बोली 'वह एहसास तो मुझे नहीं हुआ,
लेकिन आज मुझे मर्द के बहशीपन का एहसास जरूर हो गया । "You are not a man, you are a beast.' करुणेश ने झेंपते हुए कहा 'I am sorry, I am really very -
क्षमा करें, लेकिन मैं अपने आप को चेक नहीं कर सका।"
नास्ते पर बैठे तो करुणेश ने कहा- 'तुम आज आराम करो। तुम्हारी तबीयत भी ठीक नहीं है। मैं काम की तलाश में बाहर निकलता हूँ।' लेकिन दिल्ली जैसे बड़े शहर में काम इतना आसानी से नहीं
मिलता । कभी करुणेश अकेले निकलता, कभी अर्चना भी साथ होती। लेकिन वे रोज शाम को निराश लौटते इधर होटल का बिल बढ़ता जा रहा था। दोनों परेशान थे कि आखिर वे क्या करें ? सिर्फ रात का समय सुकून भरा होता जब वे एक दूसरे की बाँहों में होते। जब करुणेश उसके सख्त उभारों को अपनी हथेलियों में लेता तो उसके कोमल जिस्म में एक अजीब सी गरमाहट होने लगती जिससे उसका पोर पोर झनझना
उठता। उस आग में वह घंटों झुलसती रहती जब सबकुछ शांत हो जाता तो दोनों गाढ़ी नींद में सो जाते ।
इस तरह एक हफ्ता गुजर गया। इस बीच करुणेश को न तो कोई नौकरी मिली और न कुछ पैसे का जुगाड़ ही हुआ। पर इस भाग-दौड़ में उसमें एक अजीब बदलाव आया। उसके शरीर की भूख धीरे-धीरे कम होने लगी और अर्थ की चिंता अधिक सताने लगी ।
एक रात दोनों इस विषय पर देर तक बातें करते रहे । करुणेश ने अपनी बेबशी जताते हुए कहा- 'मेरे पास जो पैसे थे वे होटल में ऐडभान्स देने और आने-जाने में खर्च हो गये। दो हजार का बिल अभी होटल का और बाकी है। कुछ पैसे होते तो होटल का बिल चुकाकर हमलोग किसी छोटे कमरे में सिफट कर जाते। मेरे हाथ में बस एक घड़ी बच गई है ।
करुणेश को परेशान देखकर अर्चना ने अपने गले से सोने का चेन निकाल कर उसे देते हुए कहा- 'यह लो। यह कम से कम पचीस हजार में जरूर बिक जायेगा। इस पैसे से हम होटल का बिल चुका देंगे और एक छोटा कमरा लेकर एक महीना किसी तरह गुजर कर लेंगे । इस बीच ट्यूशन करके हमलोग इतने पैसे तो जरूर कमा लेंगे कि कम- से-कम अपना पेट पाल सकें।
लेकिन कल जब करुणेश चेन लेकर निकला तो देर रात तक नहीं लौटा । ऐसे वह रात के आठ बजे तक जरूर लौट आता था । लेकिन जब वह ग्यारह बजे तक नहीं लौटा तो अर्चना परेशान हो उठी। उसे विश्वास होने लगा कि शायद करुणेश उसे धोखा देकर भाग निकला। निराश और बेबस वह रातभर अपने आंसुओं से तकिये को भिंगोती रही। औरत के भीतर जब कोई रूहानी प्यास जगती है तभी वह किसी मर्द को अपना दिल देती है। लेकिन मर्द सिर्फ उसके जिस्म का भूखा होता है । अपनी जिस्मानी भूख मिटाकर जब वह चल देता है तो औरत उगी सी रह जाती है। अर्चना आज उसी ठगी का शिकार हो चुकी थी । अब चाहे वह जितने भी आंसू बहाले उसके दिल के घाव भर नहीं सकते ।