कच्ची उम्र का प्यार

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 आज सुबह से ही शर्मीली का मन किसी काम में नहीं लग रहा है। पता नहीं क्यों उसे पुरानी बातें याद आ रही हैं, लगता है कि वह पुरानी ना होकर हाल की ही बातें हो।


तभी मुक्ता के रोने की आवाज सुनकर वह वर्तमान में आ गई। बेटी को गोद में लेकर पुचकारने लगी, लेकिन वह चुप होने का नाम ही नहीं ले रही है। जरूर उसे भूख लगी है, यह सोचकर उसने अपनी सूखी छाती उसके मुँह में लगा दी। दूध की धार मुँह में जाते ही मुक्ता तो चुप हो गई, लेकिन शर्मीली की जान निकली जा रही है भरपूर खुराक नहीं मिलने से इन दिनों वह बहुत कमजोर हो गई है।

मुक्ता के पापा की नौकरी नहीं रही, घर वाले भी बेघर कर दिये हैं। सर छुपाने के लिए जगह नहीं है। जब तक बचाये हुए रुपये थे, काम चल रहा था, अब तो वह भी चुकते जा रहे है, पता नहीं कैसे दिन कटेगा ? दिन-रात घर में बैठे-बैठे बिहारी को मुझे कोसने के अलावा कोई काम नहीं बचा है।

शर्मीली अपने आप से प्रश्न करती है कि 'बिहारी के साथ भाग कर मैंने कोई गलती तो नहीं की है ? क्या अपने मन का करना इतना बुरा होता है ?' माँ सच ही कहती थी कि 'बेटी यदि अपना शील बचाकर मर्यादा में रहे तो उसके साथ-साथ माँ-बाप, कुल खानदान की इज्जत बढ़ती है। उस समय माँ की बात समझने का उसके पास वक्त ही कहाँ था ? वह बिहारी के प्यार में इस कदर दीवानी हो गई थी कि सब कुछ फीका लगने लगा था पिताजी का प्यार, माँ का दुलार और सहेलियों की चुहलबाजी चौबीसों घंटे आँखें किसी को ढूँढ़ती सड़क पर ही लगी रहती थी। माँ ने कई बार टोका भी था कि 'शम्मू जब ना, तब दरवाजे पर क्या देखती रहती हो ? कोई आने वाला है क्या ?' उसने कहा, 'नहीं तो ऐसे ही देख रही थी।' माँ से बात करने के बाद फिर उसकी नजर सड़क पर चली गई। उसने देखा कि वहाँ बहुत चहल-पहल है। लगता है पास के गाँव में मेला लगा है।



उसने माँ से बड़े उत्साहित होकर कहा, 'देखों नाम रंग-बिरंगे कपड़े पहने एंड के झुंड लोग उधर ही जा रहे है।' तभी बस का हाने सुनकर उसके कान आवाज की ओर चले गये और वह यह देखने लगी कि बस रुकती है या नहीं! बस रूकी और रूटीन के मुताबिक सीमेंट वाले चबूतरे पर बिहारी लेट गया। आदतन शमीली एक लोटा पानी और बिस्कुट लेकर सबकी नजर बचाते हुए भागकर बिहारी के पास गई। उसके हाथ से पानी का लोटा लेते हुए उसने बड़ी प्यार भरी नजरों से उसे देखा, आँखें चार हुई और शर्माली बुत की तरह एकटक उसे देखती ही रह गई। तभी घर से माँ की पुकार सुनकर उसका ध्यान भंग हुआ और वह भागी- भागी अंदर चली गई।

माँ ने छूटते ही पूछा 'लोटे में पानी लेकर कहाँ गई थी। किसको पानी पिला आई ?' एकाएक माँ के सवालों से घबराकर वह हकलाने लगी। उसके मुँह से बोल ही नहीं फूट रहे थे। माँ ने कहा 'आजकल तुम्हारे रंग-ढंग अच्छे नहीं लग रहे हैं। पता नहीं कहाँ खोई रहती हो ?' फिर माँ ने अपने आप को संभालते मन ही मन कहा, ‘मैं नाहक यह सब सोच रही हूँ ? मेरी बेटी ऐसा कुछ भी नहीं कर सकती है, जिससे हम लोगों को शर्मिन्दा होना पड़े।' हुए

तीन बेटों के बाद घर में लक्ष्मी के रूप में शर्मीली का जन्म हुआ है। जब से उसका जनम हुआ तब से घर में जैसे धन की वर्षा होने लगी है। इसके पापा की ठेकेदारी भी अच्छी चलने लगी। खेत में भी फसल खूब हो रही है। बिना प्रयास के ही सब कुछ अच्छा हो रहा है इसलिए घर के सभी लोग शर्मीली को 1 बहुत प्यार करते हैं और उसे किसी की नजर ना लग जाये इसके लिए बाहर नहीं जाने देते। यहाँ तक कि स्कूल भी नहीं भेजते हैं। उसे पढ़ाने के लिए एक शिक्षक घर पर ही आते है। इस तरह स्वतंत्र रूप से ही वह सातवीं कक्षा पास कर गई। उसके बाद उसकी पढ़ाई बंद हो गई।

एक दिन एक ज्योतिषी ने शर्मीली का हाथ देखते हुए कहा, 'यजमान आपकी बेटी आपके लिए बहुत ही शुभंकरी है। जब तक यह आपके घर में रहेगी घर में किसी प्रकार की परेशानी नहीं होगी और ऐसे ही धन बरसता रहेगा, लेकिन इसकी खुद की जिंदगी में बहुत कष्ट है।' ज्योतिषी की बात सुनकर उसके पिता ने निश्चय किया कि शर्मीली का विवाह अभी नहीं करेंगे। लेकिन होनी को आज तक कौन टाल सका है ? वह तो होकर ही रहता है।

एक दिन शाम को वह घर के अंदर थी कि उसे बस का होने फिर सुनाई दिया। आवाज से सम्मोहित होकर वह भागते हुए उसी जगह चली गई, जहाँ हमेशा

बिहारी उसकी प्रतीक्षा करता है। आँखों ही आँखों में दोनों में बातें हुई। बिहारी ने एक पैकेट निकाल कर शर्मीली को देते हुए कहा, 'पैकेट के अंदर एक पत्र है उसे पढ़ लेना और उसके अनुसार तैयार रहना, रात में सबके सो जाने पर मैं तीन हॉर्न दूँगा, तुम आ जाना। सच में अब तुम्हारे बिना एक पल भी मुझे चैन नहीं मिलता है । '

बिहारी की बात सुनकर शर्मीली का कलेजा धक-धक धड़कने लगा, उसने सोचा, 'पता नहीं क्या होने वाला है ?' किसी ने ठीक ही कहा है प्यार में आदमी पागल हो जाता है, वह आगे-पीछे कुछ नहीं सोचता है। लगता है उस पर भी यही पागलपन सवार हो गया था। खलासी बस का बोनट खोलकर जाँच-पड़ताल कर रहा था, बिहारी भी स्टेयरिंग पर आकर मुआयना कर रहा था और बड़बड़ा भी रहा था, 'पता नहीं एकाएक बस में क्या गड़बड़ी हो गई कि स्टाट ही नहीं हो रही है।' बहुत कोशिश पर भी जब बस नहीं चली तो खलासी ने यात्रियों से कहा, "बस खराब हो गई है, अब आगे नहीं जायेगी। आप लोग अपनी व्यवस्था कर लें। यात्रियों में से कुछ युवक थे, उन्होंने बहस आरंभ कर दी, हमने पूरा पैसा दिया है, ऐसे बीच में आप हमें कैसे उतार दीजियेगा, युवकों के चिल्लाने का कोई फायदा नहीं हुआ। ड्राईवर ने कहा, 'भैया मुझसे तो बस नहीं चलती आप ही चलाकर देख लो, अगर चले तो मुझे कोई आपत्ति नहीं।'

सबने हार कर बस से उतर जाना ही उचित समझा। इस तरह बस खाली हो गई। वह अमावस की रात थी, चारों और घुप्प अंधेरा था। रह-रह कर कानों में झिंगुर की आवाज सुनाई दे रही थी। पूरा गाँव निंद्रा देवी के आगोश में था। सिर्फ शर्मीली सोलहो श्रृंगार कर अपने प्रियतम के संकेत की प्रतीक्षा कर रही थी। वह सोच रही थी कि कब हॉर्न बजे और वह बस में सवार होकर अपनी नई दुनिया में प्रवेश करे।

रात्रि के एक बजे होंगे एकाएक तीन बारी हॉर्न बजा। शर्मीली धीरे-धीरे दबे पाँव घर के पिछले दरवाजे से निकलकर बस की पिछली सीट पर दुबक कर लेट गई। खलासी का इशारा पाकर बिहारी ने बस स्टट की। उस समय जो बस चली तो वह चलती ही रही।

सुबह होने को है, सूरज की लालिमा आसमान में चारों ओर फैल गई। बस किसी दूसरे जिले के बस डिपो में आकर रूकी। दोनों यहाँ से रिक्शा पकड़कर एक परिचित सज्जन के यहाँ गये। एक-दो दिन वहाँ रूककर बिहारी ने बगल में ही एक अच्छा घर किराये पर लिया और दोनों उस घर में रहने लगे। धीरे-धीरे जरूरत का सारा सामान आ गया, कुछ दिन ऐसे ही चला फिर एक दिन ऑफिस जाकर उसने

लम्बी छुट्टी ले लो फिर मंदिर में जाकर दोनों ने विधिवत् विवाह रचा पत्नी के रूप में रहने लगे। उसके बाद से उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई। नई 1 नये लोग, सब कुछ नया-नया सुखद हा लग रहा था। एक दिन बिहारी ने आते ही कहा 'मैं कुछ दिन के लिए जा रहा है। जगह,

यदि इस बीच तुम्हें किसी चीज की आवश्यकता हो तो तिवारी जी से मंगवा लेन मैंने कभी नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी हम लोग एक-दूसरे से अलग होंगे। उससे विछोह की बात सोचकर ही में मायूस हो गई, लेकिन उसे तो जाना था और गया। मैं चुपचाप उसे जाते हुए देखती रही। पन्द्रह दिनों के बाद एक दिन को ढेर सारे समान के साथ बिहारी गाँव से वापस आ गया। उसे देखते ही मेरा मन खिल उठा, लेकिन यह क्या ? वह बड़ा थका-थका सा, उदास लग रहा था। मैंने पूछा, 'तबीयत ठीक है ना!' मुरझाये स्वर में उसने उत्तर दिया, 'हाँ ठीक है।' पूछा, 'जरूर मुझसे कुछ छुपाया जा रहा है ?' उसने जवाब दिया, 'नहीं तो तुम्हें ऐसे ही शक की बीमारी हो गई है।' चला

रात में सोने के समय भी उसका व्यवहार पहले की तरह नहीं देखकर मेरे मन में अनेक तरह की शंका होने लगी मैं सोच रही थी कि घर पर किसी के शायद कुछ कह दिया या चोरी-छुपे शादी करने पर उसके माता-पिता नाराज हो गये होंगे, आदि। दोनों को नींद नहीं आ रही थी दोनों इसी तरह करवट बदल रहे थे। मैंने बात शुरू करते हुए कहा, 'इस तरह मन ही मन क्यों घुट रहे हो ? क्या बात हुई, मुझे बताओ मन हल्का हो जायेगा।' लेकिन उसका पुरुष होने का अहम् उसे अपनी बात कहने से रोक रहा था। मैं भी कहाँ छोड़ने वाली थी। मेरे बहुत जिद् करने पर उसने कहा, 'जान तुमसे मैंने एक बात छुपाई थी, मेरी पहले भी एक शादी हो चुकी है और उस पत्नी से एक बेटा और एक बेटी है।' वह थोड़ी देर रुका और फिर बोला, 'माँ-पिता जी ने दूसरी शादी करने पर मुझे बहुत फटकारा और कहा, 'अब तुम उसी को लेकर रहो, तुम्हें यहाँ की सम्पति और हम लोगों से कोई मतलब नहीं रखना होगा।' क्या कहूँ उनकी बात सुनकर मैं बहुत निराश हो गया। मैं कितनी आशा लेकर उनके पास गया था कि उनको राजी कर खुशी-खुशी तुम्हें अपने साथ घर ले जाऊँगा।' बिहारी की आत सुनकर मैं सन्न रह गई। मुझे अपने-आप से खीझ होने लगी। मैंने सोचा, 'क्यों में इसकी चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गई, अब तो इसकी नौकरी भी नहीं है, मैं भी ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं कोई काम करके गुजर करूंगी। माँ-बाबूजी के पास जाने का तो मेरा मुँह ही नहीं है। क्योंकि उनकी पगड़ी उछाल कर आई हूँ में पता नहीं उन लोगों का क्या हाल होगा ? गाँव-जवार के लोग उन पर थू-थू करते होंगे।' इतना सोचते ही आँखें सावन


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भादो सी बरसने लगी। बिहारी उसे इस तरह जार-जार रोते देखकर बहुत दुखी हुआ 'और इसके लिए अपने आपको दोषी समझने लगा। वह सोच रहा था कि 'अपने मनचलेपन के कारण नाहक मैंने इस मासूम की जिंदगी नरक बना दी। माँ-बाप की इकलौती बेटी थी, गाँव में क्या ठाठ से रहती थी और आज एक-एक चीज के लिए मोहताज है।'


कई महीने से इस मोहल्ले में रहने के कारण पड़ोसियों से शर्मीली की अच्छी बनने लगी थी। उसके घर में आई कड़की को भौंपकर कभी-कभी सुखिया काकी उसकी मदद कर दिया करती थी। ना जाने क्यों काकी को शर्मीली पर अपनी बेटी जैसा प्यार उमड़ आता था। काकी को कोई बेटी जो नहीं थी! मुक्ता तो उनके प्राण में जैसे बस गई थी। उसके बिना वे एक पल भी नहीं रह पाती थी। इस तरह उनके प्यार से अभिभूत होकर एक दिन शर्मीली ने अपनी राम कहानी उन्हें सुना दी। काकी ने जब उसके माँ-बाप का नाम जाना तो वे रूआँसी हो गयीं, क्योंकि शर्मीली उनकी फूआ की पोती है। बहुत दिनों से वह अपनी फूआ के यहाँ नहीं गई थी, जब उन्होंने सुना कि उनका फुफेरा भतीजा अपनी इकलौती बेटी के गुम हो जाने के दुःख से दुनिया छोड़कर परलोकवासी हो गया, तब उनसे नहीं रहा गया और वे दौड़ी-दौड़ी फूआ के गाँव गयी और....आज शर्मीली को इस तरह अपने पास पाकर उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है। शर्मीली के निकम्मे पति को देखकर उन्हें चिढ़ होने लगी। उनका मन किया कि नाबालिग लड़की को भगाने के जुर्म में उसे पुलिस के हवाले कर दें. लेकिन यह सोचकर चुप रह गई कि 'इसके गम में तो उनका भाई दुनिया छोड़ ही चुका है, अब गड़े मुर्दे को उखाड़ने से क्या फायदा 2' इससे शर्मीली की भी बदनामी होगी। इससे तो अच्छा यह होगा कि इस निकम्मे को ही समझा-बुझाकर किसी काम पर लगा दिया जाये, जिससे शर्मीली और मुक्ता की जिंदगी सँवर सके।

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