वह क्षण जब दस्तक देगी कामयाबी

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 आप क्या चाहते हैं? जो भी कार्य करेंगे उसमें सफलता मिलेगी  यही चाहिए ना?  पश्चिमी मनोवैज्ञानिक एक ही बात सिखाते हैं, 'आप सफल हों', 'आप सफल हों'। शब्दों को बार-बार याद करते रहें। आपका हर कार्य, हर कदम सफलता की ओर लक्षित है ।

ऐसे प्रयास से बहुत संभव है कि आपका रक्तचाप बढ़ जाए।  सफलता को ध्यान में रखकर कड़ी मेहनत करने पर भी आपको सफलता प्राप्त होगी।

इस द्वंद्व के कारण तनाव, आशंका, चिंता, मानसिक परेशानी आदि कई चीजें सामने आती हैं। सभी पिशाच तुम पर हावी हो जायेंगे।

ज़ेन दर्शन कहता है कि अगर किसी की नज़र लक्ष्य पर टिकी हो तो आदमी आधा अंधा हो जाता है। जाता है। ये बेचारा अपनी बची हुई एक आँख से कहाँ तक काम करेगा?

इस तरह आधे-अधूरे मन से काम न करें. जो काम इस वक्त करना हैदोनों आंखों का उपयोग करके इसे पूरी तरह पूरा करें। इससे अपने लक्ष्य हासिल करें लक्ष्य को पकड़ने के लिए उछलने-कूदने की जरूरत नहीं पड़ेगी, बल्कि आप सफलता का लक्ष्य हासिल कर सकेंगे।

आसानी से छुआ जा सकता है. ठीक से समझो. आपको ध्यान देकर मेहनत करनी चाहिए, ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है. इस बात को स्पष्ट करने के लिए जेन की एक दिलचस्प घटना है


वहाँ चान सु नाम का एक ज़ेन गुरु रहता था। तलवारबाजी में उनकी बराबरी कोई नहीं कर सकता किया जा सकता है। उनके पास एक नया शिष्य आया। उसने गुरु से पूछा, 'क्या आप मुझे यह बता सकते हैं?

क्या हम देश का सर्वश्रेष्ठ नायक तैयार कर पाएंगे? 'क्यों नहीं... दस साल में मैं तुम्हें इसके लिए तैयार कर दूंगा' गुरुजी ने कहा.  ओह, दस साल? गुरुदेव, यह क्षमता पांच साल में आ जानी चाहिए! मैं दूसरों का हूं

मैं दोगुनी मेहनत करने को तैयार हूं.' चान सू ने कहा, 'तब इसमें बीस साल लगेंगे।' शिष्य आश्चर्यचकित हो गया, 'अगर इतना  अगर कड़ी मेहनत पर्याप्त नहीं है, तो मैं चार गुना अधिक मेहनत करने के लिए तैयार हूं।'

'ऐसा करोगे तो चालीस साल लग जाएँगे न ?' गुरु ने कहा । हाँ, ज्यों-ज्यों आप अपने को,  अपने शरीर को ज्यादा दुख देंगे, लक्ष्य को पाने में उसी अनुपात में ज्यादा समय लगेगा। चान  सू ने उस चेले को यही मर्म समझाया।

कड़ी मेहनत करने वाले लोग कभी-कभी सफल तो हो जाएँगे, लेकिन वे उसकी खुशी का अनुभव नहीं पा सकते ।

विश्व के महान आविष्कार, वैज्ञानिकों के जीवन में उन्हीं क्षणों में घटित हुए हैं जब वे पूर्ण रूप से मानसिक रूप से आराम की स्थिति में थे ।

पेड़ के नीचे निरुद्देश्य बैठे रहने के समय न्यूटन ने सेब को नीचे गिरते देखा। उसी क्षण पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का रहस्य उनके दिमाग में कौंध गया और एक अद्भुत आविष्कार का जन्म हुआ । 

वह क्षण जब दस्तक देगी कामयाबी आपकी अभिलाषा कौन-सी है ? जो भी काम हाथ में लें उसमें सफलता मिलनी

चाहिए, यही न ?

पश्चिम के मनोवैज्ञानिक यही सीख देते हैं, 'सफलता मिले', 'सफलता मिले' इन्हीं शब्दों को बार-बार रटते रहें। आपका प्रत्येक कार्य, हरेक कदम सफलता पर लक्षित  रहे ।

ऐसे प्रयास से, बहुत संभव है, आपका रक्तचाप बढ़ जाए।

सफलता पर ही ध्यान रखते हुए कड़ी मेहनत करने पर भी मन में 'कामयाबी मिलेगी या नहीं मिलेगी' इस द्वंद्व के चलते तनाव, आशंका, चिंता, मानसिक क्लेश जैसे कई सारे पिशाच आपके ऊपर हावी हो जाएँगे ।

जेन दर्शन कहता है, लक्ष्य पर अपनी एक आँख गड़ा देने पर आदमी आधा अंधा हो जाता है। बाकी बची हुई एक आँख से बेचारा किस हद तक काम कर सकता है ?

इस तरह आधे-अधूरे ध्यान के साथ काम न कीजिए। इस क्षण में जो काम करना है उसे दोनों आँखों का प्रयोग करते हुए पूर्ण रूप से संपन्न कीजिए। इससे अपने लक्ष्य को पकड़ने के लिए उचकने की जरूरत नहीं पड़ेगी, बल्कि आप सफलता के लक्ष्य को आसानी से छू सकते हैं।

ठीक-ठीक समझ लें।

आपको ध्यान के साथ मेहनत करनी चाहिए, कड़ी मेहनत करने की जरूरत नहीं है।

इस बात को स्पष्ट करने के लिए जेन में एक दिलचस्प वाकया मिलता है चान सू नाम से एक जेन गुरु रहते थे। तलवारबाजी में उनकी बराबरी कोई नहीं कर सकता था। उनके पास एक नया चेला आया। उसने गुरु से पूछा, 'क्या आप मुझे इस देश का सर्वश्रेष्ठ वीर बना सकेंगे ?'

'क्यों नहीं... दस साल में मैं तुम्हें उस लायक तैयार कर दूँगा' गुरुजी ने कहा।

ओह, दस साल ? पाँच साल में यह क्षमता आनी चाहिए गुरुदेव ! मैं दूसरों की बनिस्बत दुगुनी मेहनत करने को तैयार हूँ।'

चान सू ने कहा, 'तब तो बीस साल लगेंगे।' चेला चकित रह गया, 'यदि उतनी मेहनत काफी नहीं हो तो चौगुनी ज्यादा मेहनत करने के लिए तैयार हूँ।'


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चाहो जब कुछ चाही  'स्वाप के टव' में लेटकर आराम से नहाने का ही आर्किमिडीज में तैरने से का आविष्कार किया।

गौर से देखिए । खेल में भी जो टीम मन में तनाव लेकर खेलती है उसकी हार होती है का आनंद लेते हुए खेलने वाले विजयी होते हैं।

सफलता... सफलता... का मंत्र रहते हुए जब भी आप स्वयं को दुख देते रहेंगे तो ऐसे आप शरीर और मन दोनों दृष्टियों से कमजोर हो जाएँगे।

सफलता के बारे में चिंता करना छोड़कर मन को शांत रखिए। शरीर अपने आप तेजी से काम करेगा।

लेकिन आपमें से ज्यादातर लोग इसके ठीक विपरीत स्थिति में होते हैं। मन अस्थिर और चंचल रहते हैं। ऐसे में शरीर की तेजी भी कम हो जाती है।

इसी तरह शंकरन पिल्लै के साथ एक बार एक अजीब घटना हुई । ' शाम को घर पहुँचने के बाद कोई काम बिना चुके करना है, इसमें भूल न होनी चाहिए' ऐसा सोचते हुए शंकर पिल् रूमाल में गाँठ बाँध ली। लेकिन घर पहुँचने पर वे उस बात को ही भूल गए, जिसे याद रखने के लिए रूमाल में गाँठ डाली गई थी।

शंकरन पिल्लै भारी तनाव में आ गए। दिमाग पर जोर डालकर सोचते रहे। छत पर काफी देर टहलते रहे, याद नहीं आई। माथा ठोक ठोक कर सोचा, कॉपी पर उन्हें सीधे जाने क्या क्या लिखकर देखा, उहूँ... याद नहीं आई।


उनकी श्रीमती जी ने सलाह दी, 'चुपचाप लेटकर यो जाइए। जो भी बात हो, कल सुबह जरूर याद आ जाएगी, देख लेंगे।'

'ना, यह नहीं होने का कोई अहम बात होगी, जिसे आज ही पूरा करने की जरूरत होगी। उसका पता लगे बिना मैं कैसे सोऊँ ?' यो कहते हुए पिल्लै बिस्तर पर करवट लेते रहे।

यह काम था... या वह... ? सोचने विचारने के इसी उधेड़बुन में दिमाग के अंदर लाखों विचार और चिंताएँ कीड़े बनकर उड़ते रहे। आखिर रात के दो बजे सभी ओर से हारकर शंकर पिल्लै ने रूमाल को दूर फेंक दिया उसी क्षण झट से बात याद आ गई।

'आज रात को नौ बजे ही सो जाना है' इसी काम की याद दिलाने के लिए रूमाल पर गाँठ बाँधी गई थी।

दिमाग पर ज्यादा जोर डालेंगे, उसे तनाव में रखेंगे तो आपके साथ भी वही घटेगा जो शंकरल पिल्लै पर घटा था।

परिणाम के बारे में चिंता करना छोड़िए हर बार पूरी लगन के साथ काम कीजिए। सफलता स्वयं आकर आपके दरवाजे पर दस्तक देगी।

'ऐसा करोगे तो चालीस साल लग जाएँगे न ?' गुरु ने कहा । हाँ, ज्यों-ज्यों आप अपने को, अपने शरीर को ज्यादा दुख देंगे, लक्ष्य को पाने में उसी अनुपात में ज्यादा समय लगेगा। चान सू ने उस चेले को यही मर्म समझाया।

कड़ी मेहनत करने वाले लोग कभी-कभी सफल तो हो जाएँगे, लेकिन वे उसकी खुशी का अनुभव नहीं पा सकते ।

विश्व के महान आविष्कार, वैज्ञानिकों के जीवन में उन्हीं क्षणों में घटित हुए हैं जब वे पूर्ण रूप से मानसिक रूप से आराम की स्थिति में थे ।

पेड़ के नीचे निरुद्देश्य बैठे रहने के समय न्यूटन ने सेब को नीचे गिरते देखा। उसी क्षण पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का रहस्य उनके दिमाग में कौंध गया और एक अद्भुत आविष्कार का जन्म हुआ ।

वह क्षण जब दस्तक देगी कामयाबी आपकी अभिलाषा कौन-सी है ? जो भी काम हाथ में लें उसमें सफलता मिलनी

चाहिए, यही न ?

पश्चिम के मनोवैज्ञानिक यही सीख देते हैं, 'सफलता मिले', 'सफलता मिले' इन्हीं शब्दों को बार-बार रटते रहें। आपका प्रत्येक कार्य, हरेक कदम सफलता पर लक्षित रहे ।

ऐसे प्रयास से, बहुत संभव है, आपका रक्तचाप बढ़ जाए।

सफलता पर ही ध्यान रखते हुए कड़ी मेहनत करने पर भी मन में 'कामयाबी मिलेगी या नहीं मिलेगी' इस द्वंद्व के चलते तनाव, आशंका, चिंता, मानसिक क्लेश जैसे कई सारे पिशाच आपके ऊपर हावी हो जाएँगे ।

जेन दर्शन कहता है, लक्ष्य पर अपनी एक आँख गड़ा देने पर आदमी आधा अंधा हो जाता है। बाकी बची हुई एक आँख से बेचारा किस हद तक काम कर सकता है ?

इस तरह आधे-अधूरे ध्यान के साथ काम न कीजिए। इस क्षण में जो काम करना है उसे दोनों आँखों का प्रयोग करते हुए पूर्ण रूप से संपन्न कीजिए। इससे अपने लक्ष्य को पकड़ने के लिए उचकने की जरूरत नहीं पड़ेगी, बल्कि आप सफलता के लक्ष्य को आसानी से छू सकते हैं।

ठीक-ठीक समझ लें।

आपको ध्यान के साथ मेहनत करनी चाहिए, कड़ी मेहनत करने की जरूरत नहीं है।

इस बात को स्पष्ट करने के लिए जेन में एक दिलचस्प वाकया मिलता है  चान सू नाम से एक जेन गुरु रहते थे। तलवारबाजी में उनकी बराबरी कोई नहीं कर सकता था। उनके पास एक नया चेला आया। उसने गुरु से पूछा, 'क्या आप मुझे इस देश का सर्वश्रेष्ठ वीर बना सकेंगे ?'

'क्यों नहीं... दस साल में मैं तुम्हें उस लायक तैयार कर दूँगा' गुरुजी ने कहा।

ओह, दस साल ? पाँच साल में यह क्षमता आनी चाहिए गुरुदेव ! मैं दूसरों की बनिस्बत दुगुनी मेहनत करने को तैयार हूँ।'

चान सू ने कहा, 'तब तो बीस साल लगेंगे।' चेला चकित रह गया, 'यदि उतनी मेहनत काफी नहीं हो तो चौगुनी ज्यादा मेहनत करने के लिए तैयार हूँ।'



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मुख्य बिंदु:

  • ध्यान और उपस्थिति: ज़ेन दर्शन यह मानता है कि जो भी कार्य हम कर रहे हैं, उसमें पूरी तरह से उपस्थित रहना चाहिए। जब हमारा ध्यान केवल लक्ष्य पर होता है, तो हम आधे-अधूरे मन से काम करते हैं और परिणामस्वरूप तनाव और चिंता का सामना करते हैं।


  • मेहनत और समर्पण: किसी भी कार्य को सफलता पूर्वक पूरा करने के लिए केवल कड़ी मेहनत ही नहीं, बल्कि एकाग्रता और समर्पण की भी आवश्यकता होती है। चान सु का यह कहना कि "दोगुनी मेहनत करोगे तो बीस साल लगेंगे" इसी बात को दर्शाता है कि केवल मेहनत करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे सही दिशा में और सही मानसिकता के साथ करना महत्वपूर्ण है।


  • तनाव से मुक्त रहना: अत्यधिक परिश्रम और सफलता की चिंता से मुक्त रहकर कार्य करने से मन शांत रहता है और कार्य की गुणवत्ता भी बढ़ती है।


ज़ेन की घटना का महत्व:

शिष्य की उत्सुकता और गुरु के उत्तर के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि जितना हम सफलता के प्रति आसक्त होंगे, उतनी ही वह हमसे दूर होती जाएगी। इसके विपरीत, अगर हम अपने वर्तमान कार्य में पूरी तरह समर्पित होंगे, तो सफलता स्वाभाविक रूप से हमारे पास आएगी।


  1. ध्यान और मानसिक आराम:


  • महान आविष्कार और वैज्ञानिक उपलब्धियाँ तब घटित हुईं जब व्यक्ति मानसिक रूप से आराम की स्थिति में थे। न्यूटन का सेब गिरते देखना एक उदाहरण है, जहाँ वे पूरी तरह से शांत और विचारमग्न अवस्था में थे।


  • जब हम तनावमुक्त और सहज रहते हैं, तो हमारा मस्तिष्क अधिक रचनात्मक और नवीन विचारों को ग्रहण करने में सक्षम होता है।

 

   2. कड़ी मेहनत बनाम ध्यानपूर्ण मेहनत:

  • पश्चिमी मानसिकता में सफलता को बार-बार रटते रहने की प्रवृत्ति होती है, जिससे रक्तचाप और तनाव बढ़ सकता है।

  • ज़ेन दर्शन कहता है कि आधे-अधूरे ध्यान से काम करने के बजाय, पूरी तरह से उपस्थित रहकर, ध्यान के साथ काम करना चाहिए। इससे न केवल तनाव कम होता है, बल्कि काम की गुणवत्ता भी बढ़ती है।

    3.लक्ष्य पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करने के नुकसान:


  • जब हम अपने लक्ष्य पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हम मानसिक रूप से अंधे हो जाते हैं, जिससे हमारी कार्यक्षमता और निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है।

  • ज़ेन गुरु चान सु का कहना है कि कड़ी मेहनत करने से लक्ष्य पाने में समय बढ़ सकता है, क्योंकि अत्यधिक मेहनत अक्सर तनाव और थकान का कारण बनती है, जो हमारे प्रदर्शन को बाधित कर सकती है।


निष्कर्ष:

सफलता पाने के लिए आवश्यक है कि हम अपने वर्तमान कार्य में पूरी तरह समर्पित और ध्यानमग्न रहें। कड़ी मेहनत करने के बजाय, सही दिशा में सही मानसिकता के साथ काम करना अधिक महत्वपूर्ण है। मानसिक शांति और आराम की स्थिति में रहते हुए कार्य करने से सफलता न केवल प्राप्त होती है, बल्कि उसकी खुशी और संतोष भी अनुभव किया जा सकता है।

यह दृष्टिकोण हमें सिखाता है कि सफलता के पीछे भागने के बजाय, हमें अपने प्रत्येक कार्य को पूरी तन्मयता और समर्पण के साथ करना चाहिए। तभी हम न केवल सफलता प्राप्त करेंगे, बल्कि उस सफलता का पूर्ण आनंद भी ले सकेंगे।

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