आज हम बात करने बाले गर्मी के बारे में कि हर साल गर्मी कियु बढ़ती जा रही हे भारत में ! गर्मी बढ़ने के बहुत से कारण है
जैसे :-
- ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन
- औद्योगिकीकरण
- वनों की कटाई
- प्रदूषण
- शहरीकरण
इन कारणों से भारत का औसत तापमान बढ़ रहा है, जिससे जलवायु परिवर्तन और असामान्य मौसम पैटर्न जैसे गर्म लहरें, ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र के स्तर में वृद्धि और अन्य पर्यावरणीय समस्याएं पैदा हो रही हैं।
आइये जानते हम की ग्रीनहाउस गैसों क्या होता है
जल वाष्प सबसे प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली ग्रीनहाउस गैस है जो ग्रीनहाउस प्रभाव में लगभग 36-72% योगदान देती है। इसके बाद कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन आती है जो क्रमशः 9-26% और 4-9% प्रभाव पैदा करती है।
कार्बनिक पदार्थों को जलाने से, जैसे कोयला, तेल, गैस, लकड़ी, और ठोस आईएनएस सब से जो धुय निकलता हे और बो एक हमरे बातावरण में मिला कर उसे एक गैस का चेंबर बना देता हे जिस हम ग्रीनहाउस गैस कहते है
ग्रीनहाउस गैसों में कई तरह की गैस और पर्दथा मौजूद होती है!
जैसे :-
- कोयला (Coal)
- तेल (Oil)
- प्राकृतिक गैस (Natural Gas)
- कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide - CO2)
- मीथेन (Methane - CH4)
- नाइट्रस ऑक्साइड (Nitrous Oxide - N2O)
- फ्लोरीनेटेड गैसें (Fluorinated Gases CFCs)
ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारणों में से एक है। इन के बढ़ने से गर्मी का ईस्टर बढ़ रहा हे
आइये जानते है की औद्योगीकरण से पर्यावरण पर किया प्रभाव परता हे
औद्योगीकरण से भी गर्मी बड़ी है जीवाश्म ईंधन और कोयला, पेट्रोलियम आदि के अधूरे दहन से बहुत हानिकारक गैसें निकलती हैं जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड के ऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसें जो सूर्य की किरणों को अवशोषित करती हैं और पृथ्वी के औसत तापमान को बढ़ाती हैं जिसके परिणामस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती जा रही हे
औद्योगिकीकरण से वायु, जल, और भूमि प्रदूषण बढ़ता है. कारखानों से निकलने वाले धुएं, धूल, और टोकरियों के कारण वायु प्रदूषण होता है. वहीं, औद्योगिक क्षेत्रों से निकलने वाले अपशिष्ट शुद्धिकरण पदार्थ और रसायनिक पदार्थ जल प्रदूषण का कारण बनते हैं. औद्योगिकीकरण के लिए उपजाऊ ज़मीन और उसके आस-पास के माहौल को नष्ट कर दिया जाता है, जिससे प्राकृतिक असंतुलन बढ़ जाता है.
ग्रीनहाउस गैसें
औद्योगिक प्रक्रियाओं से वायुमंडल में बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं. इन गैसों की बढ़ती मात्रा से ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन होता है.
प्राकृतिक संसाधनों का दोहन
औद्योगीकरण के कारण प्राकृतिक संसाधनों का दोहन होता है. दुनिया की बढ़ती आबादी के साथ-साथ जीवन स्तर में भी बढ़ोतरी हुई, जिससे प्राकृतिक संसाधनों की कमी हो गई.
पारिस्थितिकी तंत्रों और वन्य जीवन को खतरा
औद्योगीकरण से नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्रों और वन्य जीवन की कई प्रजातियों को खतरा पहुंचा है.
वनों की कटाई से वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है
आज हम बात करे गए की भारत में हर साल कितने पड़े कटे जाते हे अब तक कितने जगल को ख़तम कर चुके हे
वैश्विक स्तर पर, हम हर साल लगभग दस मिलियन हेक्टेयर वनों की कटाई करते हैं। यह क्षेत्र हर साल पुर्तगाल के आकार का है। इस वनों की कटाई का लगभग आधा हिस्सा पुनः वनों के उगने से पूरा हो जाता है, इसलिए कुल मिलाकर, हम हर साल लगभग पाँच मिलियन हेक्टेयर वनों को खो देते हैं। लगभग सभी - 95% - वनों की कटाई उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में होती है।
भारत में हर साल कितना जंगल खत्म हो रहा रहा है आंकड़ों से पता चला है कि 2013 से 2023 तक भारत में वृक्षावरण में 95 प्रतिशत की कमी प्राकृतिक वनों में हुई है। 2017 में सबसे ज़्यादा 189,000 हेक्टेयर वृक्षावरण में कमी आई। देश में 2016 में 175,000 हेक्टेयर और 2023 में 144,000 हेक्टेयर वृक्षावरण में कमी आई, जो पिछले छह सालों में सबसे ज़्यादा है।
भारत में वन क्यों घट रहे हैं विशाल क्षेत्रों में वनों का सफाया, भारत के कुछ भागों में स्थानांतरित कृषि की प्रथा, भारी मृदा क्षरण, पशुचारण समूहों द्वारा अत्यधिक चराई, ईंधन के लिए लकड़ी का दोहन, भूमि पर मानव के कब्जे के सभी परिणाम भारत में वन क्षेत्र के घटने में प्रमुख योगदानकर्ता हैं।
भारत में हर साल कितने पेड़ काटे जाते हैं केंद्र ने सोमवार को कहा कि 2020-21 में पूरे भारत में सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निर्माण और विकास के लिए लगभग 31 लाख पेड़ काटे गए, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में एक भी पेड़ नहीं गिराया गया।
प्रदूषण से वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है
एयर कंडीशनिंग गर्मी के मौसम में इमारतों और कारों में एयर कंडीशनिंग की वजह से बिजली की खपत बढ़ जाती है, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है.
जंगली आग गर्मी की वजह से जंगलों में आग लगती है, जिससे बड़ी मात्रा में कण उत्पन्न होते हैं. ये कण हवा के ज़रिए घनी आबादी वाले इलाकों तक पहुंच सकते हैं.
ओज़ोन गर्म मौसम में सूर्य की रोशनी की वजह से जमीन के स्तर पर ओज़ोन बनता है. अत्यधिक गर्मी की लहरों के दौरान, ओज़ोन का स्तर शहरों और आस-पास के इलाकों में खतरनाक स्तर तक पहुंच सकता है.
गर्मी के कारण इमारतों और कारों में एयर कंडीशनिंग की बिजली की खपत बढ़ जाती है, और इस अतिरिक्त बिजली के उपयोग से वायु प्रदूषण भी बढ़ जाता है। जलवायु परिवर्तन के कारण लंबे समय तक गर्म रहने से पराग जैसे पौधों पर आधारित एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों का उत्पादन भी बढ़ सकता है
शहरीकरण से वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है
हां, बढ़ती गर्मी का एक कारण तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण भी है. शहरीकरण की वजह से शहरों में भूमि की सतह में बदलाव आता है और ऊर्जा उपयोग से अपशिष्ट ऊष्मा पैदा होती है. इसके अलावा, शहरों में पेड़ों की कमी और पक्की सतहों की वजह से दिन के समय तापमान बढ़ जाता है और रात में ठंडक कम होती है. इस वजह से शहरों में शहरी ऊष्मा द्वीप बनने लगते हैं. अध्ययनों के मुताबिक, भारतीय शहरों में शहरीकरण ने बढ़ते तापमान में औसतन 0.2 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक का योगदान दिया है. वहीं, दिल्ली में शहरीकरण ने बढ़ती गर्मी में 32.6 फ़ीसदी का योगदान दिया है
शहरीकरण की वजह से शहर जलवायु परिवर्तन में भी अहम भूमिका निभाते हैं. शहरों में होने वाली गतिविधियां ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का बड़ा स्रोत हैं. अनुमानों के मुताबिक, शहरी क्षेत्र वैश्विक CO2 उत्सर्जन का 70 फ़ीसदी ज़िम्मेदार हैं. इसमें परिवहन और इमारतें सबसे बड़े योगदानकर्ता हैं.
कुल मिलकर देखें तो अध्ययन किए गए भारतीय शहरों में शहरीकरण ने बढ़ते तापमान में औसतन 0.2 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक का योगदान दिया है। यदि दिल्ली से जुड़े आंकड़ों को देखें तो शहरीकरण ने बढ़ती गर्मी में 32.6 फीसदी का योगदान दिया है। अनुमान है कि 2050 तक दुनिया की 68 फीसदी आबादी शहरों में रह रही होगी।