ये कहानी आप को बदल देगी

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 ये कहानी आप को  बदल देगी 




ये कहानी हे प्रिंसी गोगोई जो असम में जन्मी हे  प्रिंसी गोगोई जी जीने के दोनों हाथ नहीं हे 

पर उन अपने जीवन में हार नहीं मानी और आज बह एक प्रिवेट हॉस्टिले में जॉब करती हे 


"कुछ लोग हम जैसे बच्चों की उपेक्षा करते हैं. मेरे बारे में कुछ लोग कहते थे कि सुबह-सुबह अंगहीन को देखना नहीं चाहिए. जीवन में ऐसी बहुत सारी तकलीफे़ं देखी हैं, लेकिन मैंने हार नहीं मानी. भगवान मेरे दोनों हाथ बनाना भूल गए लेकिन मैं कभी निराश नहीं हुई. मैंने अपने पैरों से सारे काम करना सीख लिया है."21 साल की प्रिंसी गोगोई जब ये बातें कहती हैं तो उनकी आँखें अटूट विश्वास से और चमकने लगती हैं.

असम के एक छोटे से शहर सोनारी में 12 जुलाई 1999 में पैदा हुई प्रिंसी के जन्म से ही दोनों हाथ नहीं हैं. सामान्य बच्चों से अलग प्रिंसी कई मुश्किलों से गुज़री हैं, लेकिन आगे बढ़ने की राह में शारीरिक अक्षमता को बाधा नहीं बनने दिया. फ़िलहाल बिना हाथ वाली यह लड़की गुवाहाटी के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में फ्रंट डेस्क एग्जीक्यूटिव की नौकरी कर अपने घर का ख़र्च उठा रही हैं.

प्रिंसी की चार बहनें और एक छोटा भाई है. उनसे बड़ी उनकी दो बहने हैं. सिवाए उनके, परिवार में आजतक कोई भी बच्चा विकलांग पैदा नहीं हुआ है. प्रिंसी को दुख है कि विकलांग बच्चों के प्रति कुछ लोगों की मानसिकता आज भी नहीं बदली है.



वह कहती हैं, "जब मेरा जन्म हुआ था तो अस्पताल में ही लोग बातें बनाने लग गए थे. मां ने मुझे सबकुछ बताया है. वे लोग ऐसे बच्चे को अशुभ मानते हैं. मेरी मां को बहुत सहना पड़ा है. आस-पास के लोग बात तक नहीं करते थे. वह किसी शादी या बैठक में नहीं जाती थीं. लोग कहते थे कि ऐसी लड़की को क्यों जन्म दिया है."

वह कहती हैं, "मुझे अपने गांव के एक सरकारी स्कूल में कक्षा पांच में दाख़िला केवल इसलिए नहीं दिया गया, क्योंकि मेरे दोनों हाथ नहीं हैं. स्कूल के एक शिक्षक ने मुझे मानसिक तौर पर विक्षिप्त कहकर अपने स्कूल में भर्ती करने से मना कर दिया. लेकिन कहते हैं कि एक दरवाज़ा बंद होता है, तो ईश्वर दूसरा खोल देता है. बाद में हमारे गांव के ही एक व्यक्ति की मदद से मेरा दाख़िला एक प्राइवेट स्कूल में हो गया और वहीं से मैंने 10वीं पास की. दुनिया में सारे लोग एक जैसे नहीं होते. जीवन में कुछ ऐसे लोग भी मिले जिनकी मदद से आज बहुत कुछ बदला है."

मेडिकल साइंस में बिना हाथ-पैर के पैदा होने वाले बच्चों को टेट्रो अमेलिया सिंड्रोम कहते है जो एक जेनेटिक बीमारी मानी जाती है. ऐसे बच्चों के माता-पिता या फिर उनकी किसी पीढ़ी में इस बीमारी के जीन्स होते हैं.ऐसा कहा जाता है कि कई पीढ़ियों बाद ये किसी बच्चे में उभरकर सामने आ जाते हैं. हालांकि ऐसे मामले लाखों में एक होते हैं. प्रिंसी की मां रंजू गोगोई अपनी इस बेटी को सबसे विशेष बच्ची मानती हैं.

प्रिंसी ने पैरों से लिखकर कला स्ट्रीम में 12वीं पास की है और वह आगे स्नातक की पढ़ाई गुवाहाटी स्थित कृष्णा कांता हैंडिक स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी से कर रही हैं. 



प्रिंसी गोगोई जे जीवन से हमें बहुत कुछ सिखने को मिलता हे हार नहीं माननी चाहिए | 


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